यदि हम सोशल मीडिया पर रहते हुए कोई प्रतिक्रिया न करें तो कोई यह नहीं समझ पाएगा कि “हम सोशल मीडिया पर क्यों हैं?”
सोशल मीडिया पर सिर्फ बने रहना ही अर्थात् उसको देख लेना मात्र ही पर्याप्त नहीं है। यदि हम सोशल मीडिया पर हैं तो हम भले ही कुछ करें या न करें, हमें सोशल मीडिया के दर्शक के रूप में गिना जा रहा है। लेकिन हमारी प्रामाणिक भागीदारी की कमी के कारण, हम उन लोगों में शामिल नहीं हो पा रहे हैं जो इस क्षेत्र में शोध को प्रेरित करते हैं।
जनता की भूमिका केवल दर्शक बनने तक सीमित नहीं होनी चाहिए, वरन उसे एक प्रतिभागी के रूप में अपनी भूमिका को विस्तार देना चाहिए। हमारा दायित्व है कि हम अपने विचार, सुझाव और प्रतिक्रियाओं के माध्यम से इस मंच को अधिक प्रासंगिक और प्रभावशाली बनाएं। सक्रिय भागीदारी से न केवल हमारी उपस्थिति सार्थक बनेगी, बल्कि यह समाज और शोध दोनों को नई दिशा देने में भी सहायक होगी।
हमें सक्रिय होकर अपनी भागीदारी सुनिश्चित करनी चाहिए। इससे न सिर्फ हमारी सक्रियता प्रमाणित होती है बल्कि हमारे देश की साख विश्व भर में बनती है।