भूमिका
मीठी आवाज कविता उत्तराखंड के प्रख्यात कवि श्री कृष्णदत्त शर्मा कृष्ण की अपनी दिवंगत पत्नी की मधुर स्मृतियों को समर्पित है। उनकी पत्नी की वह मीठी आवाज़, जो कभी उनके जीवन का संगीत थी, अब स्मृतियों के गीत बनकर उनकी आत्मा को सुकून देती है। यह कविता उस अनमोल रिश्ते की भावनाओं और यादों को सजीव करती है, जो कभी प्रेम, हंसी और सहचरी के रूप में उनके जीवन का हिस्सा थी। इस रचना के माध्यम से कवि ने अपनी पत्नी की मीठी आवाज़ को शब्दों में कैद करने की कोशिश की है, ताकि उनकी स्मृतियाँ सदैव जीवित रहें।
मीठी आवाज
मीठी-सी आवाज तुम्हारी सुनी ना मैंने वर्षों से।
लगता पीलापन खोया है फूलों वाली सरसों से।
जब भी नाम तुम्हारा आता मन भावुक हो जाता है।
सुन्दर चेहरा मेरे सम्मुख आकर के मुस्काता है।
याद तुम्हारी बातें करके चैन मेरा खो जाता है।
विरह वेदना में मन मेरा हिचकोले से खाता है।
हाल मेरा ऐसा ही जग में पाया मैंने वर्षों से।
लगता पीलापन खोया है फूलों वाली सरसों से।।१।।
कभी-कभी तो देखा जैसे खीझ स्वयं पर जाता हूँ।
लेकिन नयना बन्द करते ही रीझा तुम पर पाता हूँ।
नयन नींद को धोखा देकर अन्तर में हर्षाता हूं।
तुम पर गीतों की रचना कर परम परम सुख पाता हूँ।
ऐसे ही सपनों में खोता आया हूँ मैं वर्षों से।
लगता पीलापन खोया है फूलों वाली सरसों से।
मात्र तुम्हारी पावन सूरत नयनों बीच समाई है।
तुमको भावों में ही पाकर चैन स्वयं मुस्काई है।
जबसे बिछड़ी महारागिनी सदा तुम्हारी गाई है।
राग तुम्हारा गाते गाते जिह्वा नहीं थक पाई है।
ऐसे ही मैं राग़ तुम्हारा गाता नित ही वर्षों से।
लगता पीलापन खोया है फूलों वाली सरसों से।।३।।
मन करता है तुम्हें बिठाकर गीत पुराने गाऊँ मैं।
जो भी तुमको गीत सुहाय पुनः उन्हें दोहराऊं मैं।
भावों की नगरी में निशिदिन तुम्हें टहलता पाऊँ मैं।
तुमको पाकर मन कोने में मन को ही बहलाऊं मैं।
ऐसी ही करता आया हूँ महाकल्पना वर्षों से।
लगता पीलापन खोया है फूलों वाली सरसों से।।४।।
बालेपन से महा सफर तक तुमको सुनकर सुख पाया।
याद उन्हीं बातों को करके एक सुखद सा दु:ख पाया।
ज्ञानवान यदि संग रहता तो मान नहिं उसका होता।
लेकिन जब भी ज्ञानी बिछड़ा याद उसे कर मन रोता।
मैं भी ज्ञान भरी बातों को याद रहा कर वर्षों से।
लगता पीलापन खोया है फूलों वाली सरसों से।।५।।
यादों की गंगा में मैं तो निशिदिन गोते खाता हूँ।
यादों के आँसू नयनों से दिखता रोज गिराता हूँ।
मैं अतीत में जब भी झांकू तुमको मुस्काती पाता।
सपने में भी खिले फूल सा तुमको महकी ही पाता।
उसी महक का अनुभव करता आया हूँ मैं वर्षों से।
लगता पीलापन खोया है फूलों वाली सरसों से।।६।।