अमर प्रेम (कविता)

अमर प्रेम (कविता)

सार छंद

अमर प्रेम

तेरा-मेरा प्यार अमर है,
जैसे मोहन राधा।
संग सदा हर पथ पर तुमने,
जीवन मेरा साधा।।
जन्म-जन्म की आस बने हम,
हर सांसें हैं तेरी।
बिना कहे हर भाव समझ ले,
ऐसी प्रीत घनेरी।।

नहीं शब्द हैं नहीं है भाषा,
करते नैन इशारा।
तेरा-मेरा बंधन प्यारा,
चुप संवाद सहारा।।
शूल मिलें या पथ अंगारे,
मिलकर कदम बढ़ाया।।
हर सपने की चौखट पर फिर ,
मन क्यों अब घबराया?

प्रीति रही आधार सदा ही,
मन से मन को आशा।
अधर मौन पर दमके आनन,
नयनों की है भाषा।।
तेरा साथ सदा जीवन में,
नव उमंग से ‘छाया’।
हर धड़कन में बसता है तू
निर्मल भाव जगाया।।

अंतर की गहराई में जब,
तेरा दर्शन पाया।
मन मुरली-सा बज उठता तब,
जीवन मुक्त बनाया।।
तू ही ब्रह्म अंश तेरा ही,
तुझमें सभी समाया।
नाम जपे अब साँस-साँस में,
‘छाया’ प्रभु गुण गाया।।

रचयिता

डाॅ. छाया शर्मा

अजमेर, राजस्थान

प्रस्तुति