कवियों की कविता श्रवणोपरान्त मेरा अनुभव
साहित्य समाज का दर्पण होता है और कवि उस दर्पण का निर्माता। हिन्दी कवि समाज की सच्चाइयों को शब्दों में ढालकर जनमानस को दिशा दिखाता है। परंतु वर्तमान समय में कुछ कवियों की प्रवृत्ति सस्ती लोकप्रियता प्राप्त करने की हो गई है।
ऐसे कवि जनभावनाओं को भड़काने वाले विषय चुनते हैं, जिनसे तात्कालिक तालियाँ तो मिलती हैं, पर साहित्यिक गहराई नहीं। वे हास्य, व्यंग्य या राजनीति पर अत्यधिक जोर देते हैं, और मूल्यों, आदर्शों से विमुख हो जाते हैं। सस्ता मनोरंजन उनका उद्देश्य बन जाता है।
साहित्य का उद्देश्य केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि सामाजिक चेतना का विकास भी है। सस्ती लोकप्रियता के मोह में कवि जब अपने कर्तव्यों से च्युत होता है, तो वह साहित्य का अपकार करता है।
हिन्दी कविता की गरिमा को बनाये रखने के लिए आवश्यक है कि कवि यश और प्रसिद्धि की चाह से ऊपर उठकर समाजहित में लिखे। उसे चाहिए कि वह अपनी लेखनी को विचारशीलता, भावनात्मक गहराई और नैतिक मूल्यों से सजाए।
सच्चा कवि वही है जो यश के पीछे नहीं, यथार्थ के पीछे दौड़ता है। तभी वह समय की कसौटी पर खरा उतरता है और साहित्य में अमर हो जाता है।
समीक्षक
महेश शास्त्री
प्रस्तुति