मुक्तक – सिन्दूर

मुक्तक – सिन्दूर

मुक्तक (सिन्दूर)

 

है सिन्दूरी मान अपना, है सिन्दूरी शान अपनी।

हर सिन्दूरी माँग में ही, बस रही जान अपनी।

इस सिन्दूरी लाज हेतु युद्ध कितने ही लड़े हैं,

सिन्दूर ही है इस जगत में, देश की पहचान अपनी।।

सिन्दूर नहीं, ये दुष्टजन को दहकता अंगार समझो।

सिन्दूर की चुटकी में सुन्दर एक बसा संसार समझो।

सिन्दूर को गर कोई भी जन इस जगत में छेड़ता है,

उसको ही सिन्दूर अपना दोमुंही तलवार समझो।।

रचयिता

श्री कृष्णदत्त शर्मा ‘कृष्ण’

प्रस्तुति