पुस्तक समीक्षा
चौथी कक्षा के लिए पाठ्य- पुस्तक
दिनांक: 05/06/2025
पर्यावरण अध्ययनः आस-पास
पर्यावरण को बच्चे अपने परिवेश के समग्र रूप में देखते हैं। पर्यावरण उनके लिए कोई औपचारिक विषय नहीं बल्कि मोहक और खुला प्राकृतिक प्रांगण है। चौथी कक्षा के बच्चों के लिए राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद्, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित पुस्तक ‘पर्यावरण अध्ययनः आस-पास’ प्राकृतिक और सामाजिक घटकों को समग्र रूप में बाल मस्तिष्क में निरूपित करती है। पर्यावरण अध्ययन से जुड़े ऐसे विषयों/उपविषयों को पुस्तक प्रस्तुत करती है जो बाल मन के स्वाभाविक रूप से करीब हैं। ताकि बच्चों के जहन में पाठ प्राकृतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक पक्षों को सूक्ष्मतर और प्रभावी परिवेश में उभार सके और बच्चे स्वःस्फूर्त ढ़ंग से पर्यावरण के प्रति अपनी सोच-समझ व विचार बना सकें।
पर्यावरण अध्ययन जैसे विषय को बच्चों के बीच गंभीर एवं रुचिकर बनाने की अपनी चुनौतियाँ हैं। कक्षा में इस काम को करना और भी दुरुह कार्य है एक शिक्षक के लिए। क्योंकि किसी कक्षा का जो अपना बहुसांस्कृतिक स्वरूप होता है उसमें हर बच्चे को संबोधित करना कि कैसे सबको महत्व मिले? यही एक अच्छे शिक्षक की सफल भूमिका निर्वहन की कसौटी भी है। पर्यावरण अध्ययन जैसे सरल लगने वाले कठिन विषयों का पाठ्य-पुस्तकों में प्रस्तुतीकरण उस राष्ट्रीय वैविध्य के साथ विद्यालयी शिक्षा में कैसे समाहित हो। हमारे समाज की सामाजिक-सांस्कृतिक विविधताओं के साथ [जाति, धर्म, लिंग, क्षेत्र] भाषायी और भौगोलिक स्थितियों का समावेशन कैसे हो? बच्चों को इन स्वाभाविक-आवश्यक भिन्नताओं के प्रति संवेदनशील कैसे बनाया जाए? इन गंभीर मुख्य मुददों को पाठ्य-पुस्तकों सहित शिक्षकों को अपने अध्यापन कौशल में साधने की मशक्कत करने की आवश्यकता है।
बच्चों को पर्यावरण पढ़ाने वाली यह पुस्तक पाठ्यक्रम को छः उपविषयों में वर्गीकृत करती है – भोजन, पानी, आवास, परिवार, मित्रगण और यात्रा-भ्रमण एवं विभिन्न वस्तुओं का बनना/बिगड़ना। इस बाल-केन्द्रित पाठ्य सामग्री का असली उददेश्य रटने की प्रवृत्ति के परे ले जाकर धारणाओं/अवधारणाओं/परिभाषाओं को महत्व न देकर सृजनात्मक उथल-पुथल बच्चों के दिमाग में पैदा करना है। ऐसे विषयों की जानकारी देना तो सरल है पर बाल-मन में प्रकृति के प्रति अनुराग पैदा करना एक पुनीत अकादमिक दायित्व है। बच्चों को समस्त जीव जगत के लिए संवेदनशील बनाना वास्तविक चुनौती है। जिससे उनमें सच्ची समझ बने। बच्चे स्वयं अपने विचार प्रकट करने को उत्सुक हों। अपने आस-पास के प्रति सजग और उत्सुक बनें। पुस्तक की पाठ्य सामग्री बखूबी इस काम को करती दिखती है। बाल कविताएं, किस्से-कहानियाँ, पहेलियाँ, नाटक, हंसी-खुशी के संवाद और क्रियाएं-प्रतिक्रियाएं पैदा करती हुई पाठ्य सामग्री पर्यावरण की प्रभावी परख कराती है। बच्चे कहानियों, यात्राओं, हास्य संवादों और कौतूहल से ज्यादा आसानी से सीखते हैं। पुस्तक की पाठ्य सामग्री को उसकी भाषा शैली भी सरल और सुग्राह्य बनाती है क्योंकि बच्चों की सामान्य बोल-चाल की भाषा में पुस्तक पर्यावरण के पाठ को आगे बढ़ाती है।
पुस्तक पर्यावरण अध्ययन का मानवीय गतिविधियों के माध्यम से अपने आस-पास के परिवेश में परिचय कराती है। कक्षा के इतर कुछ करके पर्यावरण की पहचान करना, अपने आस्-पास का आकलन अवलोकन के आधार पर करना, उस प्राकृतिक प्रांगण के साथ जुड़ाव महसूस करना जो समस्त जीवों के जीवन का आधार है। पर्यावरण पढ़ाने के लिए बच्चों को सुनने-बोलने से ज्यादा देखने के अभ्यास कराने आवश्यक हैं। पुस्तक के अवलोकन के अभ्यास बच्चों को प्रकृति के प्रति प्रेम से भर देंगे। बच्चों को नदियों-तालाबों, बाग-बगीचों, पेड़-पौधों और प्राकृतिक परिदृश्यों की परख उस दृष्टा भाव से करनी सिखानी होगी जो उन्हें सौंदर्य-बोध के आह्लाद के अलावा उस सत्यम-शिवम् की भी समझ में समावेश करने का कौशल सिखाए जो भारतीय भाव पर्यावरण की संवेदनशीलता के साथ जुड़ा है। जिसमें वैज्ञानिक आख्याएं आस्थाओं को अलग नहीं करती हैं। वह गंगा की जल धारा को जीवन आधार के आगे जीवनदायिनी माँ भी मानता है। पर्यावरण की ऐसी समग्र समझ ही समस्त जीव-जगत के लिए कल्याणकारी बन सकती है। ऐसे प्रयास पुस्तक में जगह-जगह अवलोकन के विभिन्न कौशलों के साथ आजमाने वाले अभ्यासों में दिखते है। पुस्तक विद्यालयी शिक्षा को स्थानीय ज्ञान से जोड़ने के उद्यम परिवेश से जोड़ने के साथ करती है। यह शिक्षक के अध्यापनीय कौशल पर ज्यादा तय करेगा कि कैसे पुस्तकीय पाठ्य सामग्री को स्थानीय परिवेश में प्रविष्ट कराए। पुस्तक में बच्चों के बौद्धिक विकास हेतु ढ़ेरों गतिविधियां हैं चित्र-कार्टून, खोज-प्रयोग, वर्गीकरण-चिन्हीकरण, वाद-संवाद, अंतर-समरूपता, लिखना-पढ़ना और अवलोकन के अभ्यास जो अवसर देते हैं समझ को खोलने का, कुछ नया सृजन करने का और बच्चों को अपने ढ़ंग से कुछ रचने का। बच्चे जब स्वयं निर्णय लेकर कुछ भी सही-गलत करते हैं तो वे कुछ नया रचते हां। उनमें क्रियात्मक कौशल का विकास होता है। ऐसे अभ्यासों से उनकी रचनात्मकता उभरेगी। उनका रचना-कौशल और सौन्दर्य-बोध विकसित होगा। जब वे समूह में बातचीत करेगें तो अपने-अपने अवलोकनों को आपस में जोड़ना सीखेंगे। भाषायी विकास का अवसर मिलेगा और सबके अवलोकन एक साथ जुड़कर जिस अंर्तदृष्टि का विकास बच्चों में करेंगे, वही पर्यावरण संरक्षण और संवर्धन की हिमायती होगी।
पाठ्य-पुस्तक का अनूठापन इसमें भी है कि पर्यावरण की परिवेशीय समझ के विस्तार हेतु समाज की मदद कैसे लेनी है? बच्चों को यह गुर भी पुस्तक सुझाती है। बच्चे अपने परिजनों, समुदाय के लोगों, मित्रों-सहयोगियों, समाचारपत्रों तक अपनी जिज्ञासाओं का इजहार करें। सबसे प्रकृति की पहेलियों पर बात करें। ब्रह्मांड के रहस्यों पर रह-रह कर विचार करें। समूह में मिलकर पर्यावरण की परख के प्रयास करें। समूह आनंद का एक नैसर्गिक स्रोत है। समूह में जब बच्चों की प्रशंसा होती है तो वे अतिरिक्त आनंदानुभूति का अनुभव करते हैं। इस पूरे पराक्रम को सफलतापूर्वक करते हुए पुस्तक चित्रों को विशेष तरजीह देती दिखती है क्योंकि चित्र पर्यावरणीय विषय-वस्तु की लिखित बातों का प्रतिबिंबन करने में अहम् भूमिका निभाते हैं। चित्रों के साथ पर्यावरणीय प्रश्नों और क्रियाकलापों को अपने विचारों के प्रस्तुतीकरण की पृष्ठभमि बनाने में बच्चों के लिए सहायक बनेगा। साथ ही सामाजिक-अकादमिक महत्व का काम यह भी है कि शिक्षक सतत मूल्यांकन प्रक्रिया में संलग्न रहे। क्योंकि बच्चे अपनी गति से, अपनी मति से और अपनी जरूरतों व स्थितियों के हिसाब से सीखते/समझते हैं। उसी के समानान्तर अपनी प्रतिक्रिया प्रस्तुत करते रहते हैं। इसलिए बच्चों का मूल्यांकन सदैव सावधानी भरी अंतर्दष्टि से ही संभव है। मूल्यांकन के लिए मन खुला होना एक अपरिहार्य शर्त है। उसकी ढे़रों विमाएं और दिशाएं हो सकती हैं। उन्हें परखने और पकड़ने के लिए हर परिस्थिति में सजग रहना होता है। प्रश्न पूछना, उत्तर देना, चित्र बनाना, कार्टून दिखाना, अच्छी-बुरी प्रतिक्रिया दर्ज कराना, सामूहिक चर्चा में वाद-विवाद का अंदाज और सहयोग सब कुछ विद्यार्थी व्यक्तित्व निर्माण प्रक्रिया के प्रारम्भ का परिवेश है। मूल्यांकन की प्रक्रिया में इस सब का महत्व है। इसलिए पुस्तक का यह अनूठापन इस पुनीत दायित्व को पूरा करने में सहायक होगा कि प्रश्नों का सिलसिला पाठ के आगे बढ़ने के साथ-साथ बीच-बीच में अपनी मौजूदगी बनाए हुए है। न कि सिर्फ अंत में प्रश्न छोड़कर इतिश्री समझ लेना। बच्चे जहाँ पढ़ें वहीं अपनी समझ से जूझें तब आगे बढ़ें। पुस्तक का यह प्रयोग विषय प्रवीणता को प्रभावी बनाने में महत्वपूर्ण पहल है।
हमारे समाज की विशेषता है विविधता में एकता। इसलिए भारतीय शिक्षा व्यवस्था का मुख्य मुददा भारतीयता के इस चरित्र को अक्षुण्ण बनाए रखना। सामाजिक-सांस्कृतिक भिन्नताओं के प्रति कैसे बच्चों को संवेदनशील बनाया जाए। क्योंकि ये सब भिन्नताएं हमारे सबके खान-पान, रहन-सहन, रंग-रूप और भौतिक सुख-सुविधाओं तक में झलकती है। हर बच्चे के मन-मस्तिष्क में स्पष्ट हो जाना चाहिए कि समाज में व्याप्त यह भिन्नता स्वाभाविक है। इसका सम्मान हर किसी के मन में होना ही चाहिए। पुस्तक अपने पाठों के जरिए इन तमाम जिम्मेदारियों को केन्द्र में रखकर सामाजिक मुददों को पूरी संजीदगी के साथ तरजीह देती है। पुस्तक में वास्तविक घटनाओं से जुड़ी कहानियाँ है। वास्तव में जीवन की वास्तविकताएं ही ज्ञान सृजन के मौलिक स्रोत हैं। जीवन से जुड़ी कहानियाँ आम लोगों की सफलता/विफलता, उपलब्धि या विचलन से बुनी होती हैं जो प्रेरक का काम करती हैं। पुस्तक के सत्ताईस अध्यायों में विस्तारित यह पुस्तक राष्ट्रीय चरित्र के समागम में बच्चों को सैर कराती है। चलो! चलें स्कूल, अमृता की कहानी, बसवा का खेत, फुलवारी, नंदिता मुंबई में, दुनिया मेरे घर में, ओमना का सफर, नानी के घर तक, पहाड़ों से समुंदर तक, मंडी से घर तक, पानी कहीं ज्यादा, कहीं कम, नन्दू हाथी, कान-कान में, हू तू तू, हू तू तू, अनीता की मधुमक्खियाँ, मिलकर खाएं, खिड़की से, खाना-खिलाना, चटपटी पहेलियाँ, जड़ों का जाल, बदलते परिवार, कैसे-कैसे बदलें घर, चूँ चूँ करती आई चिडिया, दूर देश की बात, पोचमपल्ली, फौजी वहीदा और कोशिश हुई कामयाब जैसे पाठ इन राष्ट्रीय विविधताओं की व्याख्या बाल-केन्द्रित समझ के साथ प्रस्तुत करते हैं।
पुस्तक प्रबुद्ध पाठकों सहित सुधि शिक्षकों और भोले बच्चों के समक्ष सहज, सरल, सुबोध और सुन्दर सामग्री प्रस्तुत करती है। जिसमें जीवन वास्तविकताएं, जीवन मूल्य, जीवन की नैतिकताएं व सामूहिकताएं अपने-अपने विश्लेषण कौशलों के साथ समालोचनाओं की अपेक्षा रखती हैं। यह सामूहिक उद्यम हम सब पढ़े-लिखे शिक्षित जनों का दायित्व है। क्योंकि इससे शिक्षण और सीखने की क्षमता का सतत विस्तार होगा। सबके अनुभव जगत से पाठ्य सामग्री और समृद्ध होगी। बच्चों में समझ पैदा करने वाले तौर-तरीकों को नए आयाम मिलेंगे।
निष्कर्षतः पुस्तक समृद्ध पाठ्य सामग्री के साथ सीखने-सिखाने की पर्याप्त सामग्री परोसती है। शिक्षकों को पढ़ने-पढ़ाने के नए क्षैतिज दिखाती है। बच्चों को सहभागिता के साथ सृजनात्मकता के नए अवसर प्रदान करती है। बच्चों के लिए राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद् का यह प्रकाशन पुस्तकीय ज्ञान को स्कूली जीवन के साथ बाहरी दुनिया से जोड़ने का एक सफल उद्यम है। पुस्तक कल्पनाशील गतिविधियों के माध्यम से और सवालों के साथ सीखने-सिखाने के दौरान अपने अनुभव जगत में विचरण करते हुए धैर्यपूर्वक विचार विस्तार के अवसर प्रदान करती है। पुस्तक की यह मौलिक मजबूती बच्चों में सृजना और पहल करने की आदत निश्चय ही विकसित करेगी। पाठ्य-पुस्तक सिर्फ परीक्षण का आधार मात्र न बने बल्कि वह प्रेरणा पैदा करे, प्रश्न पैदा करे और पाठ्य सामग्री को समृद्ध करे। पुस्तक परम्परागत शैक्षिक परिदृश्य में परिवर्तन की परिकल्पना का प्रेरक आधार प्रस्तुत करती है। पुस्तक मूल्यांकन की नयी संस्कृति के सूत्र प्रस्तुत करती है। पुस्तक पठनीय, आकर्षक, सरल भाषा शैली में लिखी गई है। पर्याप्त मोहक रंगों के साथ चित्र, कार्टून, बॉक्स, हाईलाइटस, उदाहरण, प्रश्न और सुन्दर छपाई पुस्तक को न्यारी बनाते हैं और बच्चों के लिए बेहद उत्सुकता पैदा करने वाली बनाते हैं। रुपए मात्र 65 मूल्य की आई.एस.बी.एन. 81-7450-692-6 के साथ प्रकाशित 215 पृष्ठों वाली पुस्तक पर्यावरण अध्ययनः आस-पास अपने आकर और सुन्दरता के लिए भी अतिरिक्त अंक पाने का अधिकार रखती ही है। शेष बच्चों और शिक्षकों की आकांक्षाओं को पूरा करने के सफल उद्यम से उभरी प्रतिक्रियाओं से प्राप्त प्रेरणाओं के प्रसंग सतत् प्रस्तुत करते रहेंगे। जय हिंद!
प्रोफेसर (डॉ.) राकेश राणा समाजशास्त्र के प्रोफेसर हैं!
एम.एम.एच. कॉलेज, गाजियाबाद (चौ.चरणसिंह विश्वविद्यालय, मेरठ से संबद्ध)