अधूरी उड़ान

अधूरी उड़ान

मनहरण छंद

अधूरी उड़ान

उड़ा था विमान नभ, लोग हुए हतप्रभ,

प्रेम और प्रार्थना से, भरे हुए प्राण थे।

 

उड़ान थी नभ ओर, छूने चला मन छोर,

उमंग भरे हृदय, प्रिय अरमान थे।

 

पता नहीं काल कब, घुसपैठ कर गया,

अंबर विस्फोट हुआ, नियति विधान थे।

होठों पर गीत नहीं, जाति-पाति नहीं कहीं,

प्रश्न अब मौन हुआ, आँखों में सवाल थे।

 

ध्वस्त हुए हैं सपने, राख हो गए अपने,

दु:ख में है डूबा हुआ, पल में मानव थे।

रचयिता

डॉo छाया शर्मा (स्थानीय सम्पादिका)

उलझन सुलझन (लेडीज विंग)

अजमेर, राजस्थान

प्रस्तुति