आचार्य निखिल का आत्मचिंतन
“जब मैंने कहा कि अपनों से सचमुच अपनापन चाहते हो तो उनसे बेवजह भी मिलो,
तो मेरे मन में यही चल रहा था कि रिश्ते किसी बड़े अवसर या औपचारिक बुलावे के मोहताज नहीं होते।”
मैंने जीवन में देखा है कि हम अपनों के पास जाने से पहले कारण ढूँढते हैं—
कभी त्यौहार, कभी जन्मदिन, कभी शादी-ब्याह।
पर सच्चा अपनापन तो उस क्षण प्रकट होता है जब बिना किसी वजह,
सिर्फ मन के खिंचाव से हम एक-दूसरे से मिलने पहुँच जाते हैं।
बिना कारण की वह छोटी-सी मुलाक़ात,
न केवल चेहरे पर मुस्कान लाती है बल्कि
दिलों की दूरी को भी पल भर में मिटा देती है।
मैं सोचता हूँ—कितने ही रिश्ते इसलिए बिखर जाते हैं
क्योंकि दोनों ही ओर से लोग बुलावे का इंतज़ार करते रह जाते हैं।
कोई पहल नहीं करता, और धीरे-धीरे मौन और दूरी रिश्ते की डोर को ढीला कर देती है।
इसलिए मेरा कहना है—
अपनों के साथ होने के लिए कारण मत ढूँढो,
क्योंकि अपनापन स्वयं सबसे बड़ा कारण है।”
चिंतक
आचार्य निखिल जी महाराज
पाठ्य उन्नयन और विस्तार व प्रस्तुति