भारत की वाणी

भारत की वाणी

धरती से अम्बर तक पहुँची, भारत माँ की है वाणी।

जननी के चरणों से निकली, यह पूजा की है थाली ।

सत्य धर्म साहस से बोले, हो जाए जग उजियारा ।

जब-जब दुश्मन आँख उठाए, अरि को मिलकर ललकारा ।

सूक्ष्म ज्ञान की गहराई से, जग को राह दिखाता है ।

अंतरिक्ष में पहुँचा भारत, नव इतिहास बनाता है।

तरुणों की आँखों में पलती, नवयुग की है परिभाषा।

भारत माँ की रक्षा के हित, जगे हृदय में अभिलाषा।

शौर्य वही अब शांत रहे जो, पर नीति वचन जब डोले है।

सब्र नहीं अब काम करेगा, शस्त्रों को तभी उठाया है।

लेकिन संकट पल जो आए, रणभेरी भी यह बोले।

सीमा पर जब वार हुआ तो, सिंह गर्जना के गोले।

भाव भक्ति संकल्प हमारा शांति धर्म है सिखलाया।

मानवता की राह दिखाकर, नव चेतन स्वर फैलाया।

तरुणों की आँखों में पलती, नवयुग की है परिभाषा।

भारत माँ की रक्षा के हित, जगे हृदय में अभिलाषा।

 

रचनाकार

डाॅ.छाया शर्मा

अजमेर,

राजस्थान