भूमिका
प्रस्तुत रचना एक कवि की भावनाओं का प्रतिबिंब है जिसमें वे किसी कार्य में पहल ना हो पाने पर असंतोष व्यक्त कर रहे हैं विधायिका को प्राथमिकताओं का स्मरण कराते हुए।
कविता
दिल्ली तेरी क्या मजबूरी ,
हमें बताओ कुछ तो तुम।
तुमने तो इतिहास रचा है,
बैठी क्यों हो अब गुमसुम।
दरबार सजे हैं तेरे अंगने में,
चला रहे जो देश यहां।
तेरी ही पावन धरती पर,
बनता है अब कानून जहां।
आस करो पूरी जनता की,
मत आंको खुद को तुम कम।
दिल्ली तेरी क्या मजबूरी,
हमें बताओ कुछ तो तुम।
तुम चाहो तो आज मिटा दो,
भूख प्यास इस जनता की।
जाति बंधन तोड़ सबके,
कड़ी जोड़ दो समता की।
तुम में तो इतिहास भरा है,
भरा हुआ है तुम में दम।
दिल्ली तेरी क्या मजबूरी,
हमें बताओ कुछ तो तुम।
रचनाकार
श्योराज बम्बेरवाल ‘सेवक’
खेड़ा मलूकानगर, ‘मालपुरा’
टोंक (राजस्थान)