हर दिन है महत्वपूर्ण

हर दिन है महत्वपूर्ण

हर दिन की महत्ता

जीवन की वास्तविक स्वर्ण जयंती

हम प्रायः जीवन को अवसरों में बाँट देते हैं—जन्मदिन, वर्षगाँठ, स्वर्ण जयंती, रजत जयंती। इन विशेष दिनों पर हम रुकते हैं, देखते हैं, सोचते हैं और फिर अगले दिन उसी गति में लौट जाते हैं। पर सच तो यह है कि जीवन की असली स्वर्ण जयंती तो हर वह दिन है, जो हमें सांस लेने, सोचने, करने और बनने का अवसर देता है।

हर सुबह जब आँख खुलती है, तो वह केवल एक तारीख नहीं होती—वह सृष्टि की ओर से दिया गया एक नया विश्वास-पत्र होता है। यह दिन हमसे पूछता है—

आज तुम किसके काम आओगे?

आज तुम किसका दुःख हल्का करोगे?

आज तुम अपने होने को किस रूप में सार्थक सिद्ध करोगे?

दिन नहीं, दृष्टि छोटी हो जाती है

दिन कभी छोटा नहीं होता, छोटी हो जाती है हमारी दृष्टि। हम बड़े अवसरों की प्रतीक्षा में छोटे-छोटे कर्तव्यों को टालते रहते हैं। जबकि सच्चाई यह है कि जीवन की उपयोगिता बड़े कार्यों से नहीं, बल्कि रोज़ के छोटे कर्मों से बनती है।

एक मुस्कान, एक संवेदनशील शब्द, किसी का सुना जाना, किसी का समझा जाना—ये सब ऐसे कार्य हैं जिनके लिए किसी मंच, समारोह या तिथि की आवश्यकता नहीं होती। हर दिन इन्हीं से जीवन का अर्थ गढ़ा जाता है।

मानव की उपयोगिता

होने से अधिक काम आने में

मनुष्य की महत्ता उसके पद, प्रतिष्ठा या स्मारकों से नहीं मापी जाती, बल्कि इस बात से मापी जाती है कि

वह अपने आसपास के जीवन को कितना मानवीय बना सका।

यदि कोई शिक्षक हर दिन ज्ञान बाँटता है,

यदि कोई माता हर दिन त्याग करती है,

यदि कोई कर्मचारी ईमानदारी से अपना काम करता है,

यदि कोई नागरिक चुपचाप समाज को बेहतर बनाता है—

तो वे सभी प्रतिदिन स्वर्ण जयंती मना रहे होते हैं, बिना शोर, बिना शंखनाद।

आज ही का दिन ही सबसे बड़ा अवसर

बीता हुआ दिन स्मृति है, पर आने वाला दिन संभावना है—और! आज का दिन ही वास्तविकता है।

जो आज किया जा सकता है, उसे किसी विशेष अवसर पर टाल देना, जीवन के साथ अन्याय है।

जब हम हर दिन को यह सोचकर जिएँ कि—

“आज मेरा होना किसी के लिए उपयोगी बने”

तो जीवन अपने आप अर्थपूर्ण हो जाता है।

निष्कर्ष

हर दिन को उत्सव बनाइए

स्वर्ण जयंती मनाइए—पर उससे पहले

हर दिन को स्वर्णिम बनाइए।

क्योंकि जब जीवन का प्रत्येक दिन मूल्यवान हो जाता है,

तो फिर किसी एक दिन को विशेष सिद्ध करने की आवश्यकता ही नहीं रहती।

इंसान होने की सार्थकता यही है—

हर दिन थोड़ा और इंसान बनते जाना।

आइडिया 💡

शब्दशिल्प

पाठ्य उन्नयन और विस्तार व प्रस्तुति