झुलसती धरती दोषी कौन?
झुलसती धरती दोषी कौन,आपस में सब बैठे मौन।
धरती बंजर कर दी सारी,बिछी जाल कंक्रीट की भारी।
अट्टालिकाऍं ऊॅंची-नीची,बहै नालियाॅं जहर सींची।
दूर-दूर तक गायब हरियाली,पड़े हुए है भूखण्ड खाली।
रंगी काॅलोनी काट दिए पेड़,कटी खेत की सारी मेड़।
तपती धरती आग उगलती,सनन-सनन लपटें चलती।
स्वार्थ साध निज वैभव का,हनन करते सब प्रकृति का।
चंद दिनों की ऐश्वर्यता हित,जीवन हुआ सभी कलंकित।
भू जल दोहन करे उत्खनन,आफत कर दी भारी उत्पन्न।
दूर-दूर तक किया सफाया,कांपे थर-थर सबकी काया।
रोग विषाणु बढ़ी बीमारी,काया सुख आयु घटती सारी।
बहे फेक्ट्री जहरीला पानी,सभी जीवों को होती हानि।
छोड़ो व्यर्थ दिखावा सारा,करो श्रृंगार धरती का न्यारा।
धरती सरसिज अमृत बरसे,जीव जंतु ना कोई तरसे।
आओ मिलकर करें प्रयास,धरती मा का होय विकास।
जन-जन तक पहुंचे संदेश, हरियाली युक्त हो अपना देश।
स्वरचित
‘नायक’ बाबूलाल नायक