कलमकारी

कलमकारी

मनहरण घनाक्षरी

ऐसा है मेरा भारत

मेरा भारत महान,
हम गाएं गुणगान,
षड ऋतुएं है आती,
आनंद उठाइए।

अलग-अलग बोली,
सब प्रेम रस घोली,
भिन्न-भिन्न त्यौहार है,
प्रेम से मनाइए।

सब्जी फल और फूल,
प्रकृति करे ना भूल,
आए समयानुसार,
मन भर खाइए।

विभिन्नता में एकता,
भारत की है मूलता,
भेद-भाव छोड़कर,
समता निभाइए।।१।।

सूर्य और चंद्र सब,
करें नहीं भेद जब,
सब जन प्रेम करें,
अपना बनाइए।

शैल नदी वृक्ष धरा,
भेद नहीं करें जरा,
सबको दें बराबर,
जिसको जो चाहिए।

प्रभु नहीं भेद करें,
सब के भंडार भरें,
छोटा बड़ा देखें नहीं,
सभी अपनाइए।

भारत की रीति यही,
घृणा नहीं प्रीति सही,
अनमोल प्रेम मोती,
सबको ही बाँटिए।।२।।

संस्कार और संस्कृति,
भारतीय रीति नीति,
सनातन धरोहर,
इसको संभालिए।

शांति का संदेश देता,
कर्म विशेष कहता,
भारत का धर्म यही,
सत्य इसे जानिए।

देश जाति और धर्म,
रखें श्रद्धा यही कर्म,
पावन हो आचरण,
निज मन ठानिए।

पढ़िए वेद पुराण,
मिलता ज्ञान निर्वाण,
ऋषि मुनि उपहार,
पाएं हम मानिए।।३।।

उल्लाला छंद

जीवन

जीवन निर्झर सा बहे, शीतल जल की धार सा।
सुरभित सुमन वायु करें, महके कर्म  बयार सा।।१।।

मन गागर आनंद की, नित नित जग में बांँटिएं।
फूल संग कंटक सदा, कंटक को सब काटिएं।।२।।

मन है सागर भाव का, ढूंढो मोती प्रेम के।
करुणा की लहरें मिलें, स्नान करें नित नेम से।।३।।

पर हित सेवा कर्म को, करुण भाव प्रेरित करें।
मनो भाव उत्तम बने, पाप-ताप सब ही टरें।।४।।

अनुपम दौलत प्रेम की, खर्च करें घटता नहीं।
बांँट बांँट कर ही बढे़, ज्ञानी जन कहते यही।।५।।

माया तम जग आवरण, गुरु है चाबी ज्ञान की।
ज्ञान चक्षु खुलते सभी, वाणी यह विद्वान की।।६।।

पद पंकज गुरु के पकड़, विनती गुरु से
कीजिए।
नत मस्तक कर जोड़ कर, गुरु वाणी रस पीजिए।।७।।

अनुपम प्रकृति दिव्य रचे, परमपिता करतार हैं।
कण-कण में व्यापक वही, एक चेतना सार है।।८।।

गीत

मैं प्रेम गीत गाऊँ

मैं प्रेम गीत गाऊं।
कैसे प्रेम गीत गाऊं ।
मनमीत मिले तो गाऊं ।
में प्रेम गीत गाऊं ।

प्रेम कोई गीत नहीं है।
यह भाव है मीठा सा।
प्रेम आत्मा का स्वर है।
सरगम है सांसों की।
दिल की धड़कन साज।
कोई आए छेड़े राग।
मैं प्रेम गीत गाऊं।
मनमीत मिले तो गाऊं ।
मैं प्रेम गीत गाऊं ।
मैं प्रेम गीत गाऊं।१।

आंखों में कोई सपना
सपने में कोई अपना
आंखों में दर्शन आस
है मन मेरे विश्वास
पूरा हो जाए सपना
मिल जाए कोई अपना
मैं प्रेम गीत गाऊंँ
मनमीत मिले तो गाऊँ
मैं प्रेम गीत गाऊँ।२।

प्रेम किया नहीं जाता ।
नही पाया जाता है।
कभी दिया नहीं जाता।
नहीं खोया जाता है।
एक क्रिया बस होने की
होता है तो होता है
प्रेम यदि हो जाए तो।
मैं प्रेम गीत गाऊं।
मनमीत मिले तो गाऊं।
मैं प्रेम गीत गाऊं।।३।।

अंतस में छुपा मोती
बनता है प्रेम ज्योति
मोती आंखों में चमके
ज्योति मुख पर दमके
फूटे मन अंकुर प्रेम
मैं प्रेम गीत गाऊं
मनमीत मिले तो गाऊं
मैं प्रेम गीत गाऊं।।४।।

क्षणिकाएँ

जिंदगी क्या है?

कोई कहता है उपहार है।
तो कोई—-संघर्ष है।
या जिंदगी इम्तिहान है?
पर मेरे लिए जिंदगी—
एक अवसर है,
कुछ करने का कुछ पाने का।।

नवांकुर!

एक बीज से उत्पन्न,
बढ़ते हुए, पौधा
फिर पेड़ बनते देखा।
और आज पत्तों से हरा भरा,
फूल और फलों से लदा हुआ।
अनगिनत बीजों के साथ।
यही है सृष्टि का –
क्रमिक विकास।।

एक सत्य यह भी

एक व्यक्ति पल भर में —
अचानक नीचे गिरा।
लेकिन आसानी से-
उठ नहीं पाया।

यह क्या था?
गुरुत्वाकर्षण, हाँ—।
यह जीवन के लिए भी–
उतना ही सत्य है,
जितना प्रकृति के लिए।
गिरना आसान ,
उठना मुश्किल।

क्षणभंगुर

सुबह-सुबह
पत्तों पर ओस के कण,
बिल्कुल मोती जैसे।
मैं देखती रही।
सूरज की किरण ने-
जैसे ही पत्तों को-
स्पर्श किया।
कुछ क्षण चमके-
अगले ही पल,
ना बूँदें थी ना मोती

आंसू

आंसू
आंँखों से छलका ,
पर क्यों? क्या पीड़ा?
क्या केवल दर्द पिघलता है?
खुशी का झरना भी-
आंखों से ही झरता है।
आंसू की पहचान,
माथे की लकीरें
या होंठों की मुस्कान।।

सुंदरी सवैया

धरती

धरती कितना सहती रहती,
मन धैर्य रखें हमसे कहती है।
जब बीज पड़े चटके धरती,
इतना जब कष्ट धरा सहती है।
खिलती कलियांँ महकी बगियांँ,
महकी महकी सब ही जगती है।
सब खाद्य जुटा कर पाल रही,
जननी सम पूज्य धरा महती है।।

हम बालक है वह पालक है,
हम जीव यहीं सब पोषित सारे।
मरते सबके तन भूमि मिलें,
तुमसे सब जीव यहाँ तन धारें।
इसकी रज पावन शीश धरें,
धरती पर वीर सभी तन वारें।
बनती धरती जननी सबकी ,
उपकार रहे हम कर्ज उतारें।।

रचनाकार

उषा उमेश गुप्ता ‘उमा’

बेंगलुरु