मानवता की बात करें

मानवता की बात करें

भूमिका

यह कविता मानवता की बात करें कवि रमन सिसौनवी की मानवीय संवेदनाओं का एक सशक्त स्वर है, जो आज के स्वार्थमय युग में मनुष्य को उसके वास्तविक धर्म; मानवता; की याद दिलाती है। कवि ने करुणा, परोपकार और सहअस्तित्व के मूल्यों को केंद्र में रखकर यह संदेश दिया है कि मनुष्य ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ रचना है, परंतु उसने जाति, धर्म, अहंकार और धन के मोह में अपनी पहचान खो दी है। कविता बार-बार यह पुकार करती है कि केवल मानवता ही वह मार्ग है, जो जीवन को अर्थपूर्ण बना सकता है और समाज को स्थायी शांति दे सकता है। निर्धनों और दुर्बलों के प्रति उपेक्षा, सहायता के स्थान पर उपहास, और दिखावे में खोती संवेदना—ये सब उस पतन के संकेत हैं, जिनसे कवि चेतावनी देता है। अंततः यह रचना मानव से मानव को राहत देने और जीवन के सच्चे अर्थों को पुनः जागृत करने का आह्वान करती है कि

यदि कुछ अमर हो सकता है, तो वह है मानवता का ही नाम।

मानवता की बात करें सब

मानवता की बात करें सब, मानवता का पता नही है!
मानव ही मानव का दुश्मन, मानवता अब कहाँ रही है!!
मानवता की बात करें सब………

ईश्वर ने धरती पर भेजा, और! मानव का नाम दिया है!
जाति, धर्म और क्षेत्रवाद से, हमने सत्यानाश किया है!!
मानव धर्म निभाओ मानव, कल क्या हो पता नही है!!!        मानवता की बात करें सब………

अहंकार ने धन-दौलत के, मानवता का ह्रास किया है!
तुम्हें गलतफहमी अपनी, सब कुछ ईश्वर ने दिया है!!
केवल परोपकार मानवता, अन्य कोई भी मार्ग नही है!!!
मानवता की बात करें सब………

निर्धन व दुर्बल को हमने, मदद का ना विश्वास दिया है!
मदद नहीं की है उनकी, उल्टा उनका उपहास किया है!!
सोचो किसके हाथ डोर, कब क्या हो जाए पता नहीं है!!!
मानवता की बात करें सब………

मानवता की रक्षा हित में, जिसने भी जीवनदान किया है!
नाम अमर हो गया है उनका, ऐसा सुन्दर सिला मिला है!!
मानव से मानव को राहत, जीने का केवल ढँग यही है!!!
मानवता की बात करें सब………

सूचना स्रोत व रचनाकार

🇮🇳🙏🙏🙏🙏🙏🙏🇮🇳
🇮🇳रमन “सिसौनवी”🇮🇳

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