कंचन सी काया
कंचन सी काया तेरी महफूज रखना बेटी
जमाने की निगाहों से इसकी हिफाज़त ज़रूरी है।
माना कि तेरी आस्मां छूने की ख्वाइश है
फ़िर भी जमाने में राक्षसों से संभलना जरूरी है।
शराफत के नकाब पहने हजारों लोग मिलेंगे राहों में,
उन नकाबों के पीछे छिपे चेहरों को पहचानना जरूरी है।
भीड़ में चलना होगा तुझे ख़ुद के ख्वाबों को सच करने की खातिर,
मगर हर राह पर सोच समझकर चलना जरूरी है।
फूलों भरी राहों में कांटे जो छिपे होंगे,
उन कांटों से तुझे बचकर निकलना बेहद जरूरी है।
तुझे नोंचने के लिए भेड़िए मिलेंगे हज़ार राहों में,
उन भेड़ियों को खत्म कर तुझे आगे बढ़ना जरूरी है।
निवाला माँ के हाथ का
बेटा घर का बना खाना खाया करो
इसमें माँ की मेहनत और तुम्हारी सेहत छिपी है।
जानती हूँ बाज़ार का खाना स्वादिष्ट है मगर घर के खाने में प्यार छिपा है।
बाजार में बना खाना पेट खराब करता है ,
जबकि माँ के हाथ का बना खाना
स्वाद के साथ सेहत बनाता है।
बाजार का खाना जेबें खाली करता है
जबकि घर का बना खाना पैसा बचाता है।
स्वाद से सेहत भली ये बात जान लो
घर का बना खाना ही खाओगे ये बात ठान लो।
रचनाकार

माया शर्मा
प्रस्तुति

माया शर्मा/स्वरचित
