दोस्ती – एक खूबसूरत रिश्ता
किसी ने मुझसे पूछा – चालीस की हो चुकी हूँ मैं, मुझे दोस्ती की कितनी डोज लेनी चाहिए?
मैंने जवाब में कहा- दोस्ती तो हर उम्र में जरूरी है। हाँ! तुम्हारी मर्जी जितनी ले लो।
उसने फ़िर बोला- अरे ये तो बताओ
दोस्ती किससे करें?
मैंने कहा- जिससे मर्जी उस से करना मगर खुदगर्ज लोगों से कभी मत करना।
उसने फ़िर बोला – अरे भाई अच्छे दोस्त कहाँ मिलते हैं?
मैंने जवाब में बोला- हर जगह मिल जायेंगे दिल की नज़र से तलाश कर तो देखिये।

अल्फ़ाज़
(हमारे शब्द हमारी वाणी)
एक अल्फ़ाज़ ही है जो किसी के दिल में उतर जाते हैं,
और अल्फाजों का ही असर है कि किसी के दिल से उतर जाते हैं।
तभी तो कहते हैं कि जब भी बोलो
ऐसा बोलो कि किसी को चुभे नहीं
किसी के दिल को ठेस ना पहुँचे।
बस इतना याद रखिए कि हमारी बातों से किसी के दिल को चोट ना पहुंचे।
जिधर से गुजरे लोगों की जुबां से
तारीफ़ बनकर याद किए जाए।
खुद भी मुस्कुराए और हर किसी को
मुस्कुराहट थमाते जाए।
क्यों कि जिंदगी वो नहीं जो खुदगर्ज
होकर जी जाए,
जिंदगी तो वो है जो औरों के लिए
जी जाए।
रचनाकार
माया शर्मा/स्वरचित
प्रस्तुति