अपनी उलझनों को सुलझाऊँ कैसे?
बताओ न डैडी आपको बुलाऊँ कैसे?
मेरे चेहरे में दिखता आपका अक्स है, अपने ही चेहरे को भूल जाऊं कैसे?
बताओ न डैडी आपको बुलाऊँ कैसे?
दिया वो सब कुछ जो था आपके पास, अब आपसे अपनी जिद मनवाऊँ कैसे?
आ जाओ न डैडी, आपको बुलाऊँ कैसे?
पैरों पर तो खड़ी हूं आपके आशीर्वाद से, बिन आपके अब नया कदम उठाऊँ कैसे, बताओ न डैडी आपको बुलाऊँ कैसे?
हर फर्ज आपने पूरा किया हमारे लिए, अब बारी मेरी थी वो अब चुकाऊँ कैसे?
बताओ न डैडी आपको भूल जाऊँ कैसे?
ताकत हो आप मेरी, मेरा अभिमान हो, कशमकश को अपनी अब अकेले सुलझाऊँ कैसे?
बताओ न डैडी आपको बुलाऊँ कैसे?
“एक बार आ जाओ न डैडी अब आपको बुलाऊँ कैसे?”

रचनाकार
शिक्षिका शालिनी चौहान
चित्र सृजन
गूगल
प्रस्तुति