मुकेश कुमावत की कलम

मुकेश कुमावत की कलम

मेरा एक सपना

सपना अपना टूट गया, अपना सब कुछ झूठ गया।

मेरा भी एक सपना था,तब सब कुछ अपना था,
सपना मेरा टूट गया,सब कुछ अपना छूट गया,
सपने में सब कुछ पाना था,ऊंचे पदों पर जाना था,
सपना मेरा टूट गया,ऊंचा पद मेरा छुट गया।

सपने में भवन बनाना था,जीना सरल बनाना था,
सपना मेरा टूट गया,सपनों का भवन फूट गया।
सपने में बाग लगाना था,आंगन में खुशबू फैलाना था,
सपना मेरा टूट गया,सुन्दर-सा बगीचा सूख गया।।

सपने में जन सेवा करना था,सरकारी मार्ग चुनना था,
सपना मेरा टूट गया,मेरा भाग्य मुझसे रूठ गया।
सपने में चार धाम को जाना था,प्रभु के दर्शन पाना था,
सपना मेरा टूट गया,भगवन भक्ति का मार्ग छूट गया।।

सपने में राम जैसा बना था,आदर्शो का मार्ग चुनना था,
सपना मेरा टूट गया,सद् आदर्शो का मार्ग छूट गया।
सपने में शिवाजी बनना था,प्रताप का मार्ग चुनना था,
सपना मेरा टूट गया, शिवाजी,प्रताप का मार्ग छूट गया।।

सपने में सपना बुनना था,सद् कर्मों का मार्ग चुनना था,
सपना मेरा टूट गया,जीवन जीने का मार्ग छूट गया।
सपने में गुरु बनाना था,अमृत-सा ज्ञान पाना था,
सपना मेरा टूट गया,सपना अपना झूठ गया।।
रचनाकार

मुकेश कुमावत मंगल

रघुनाथपुरा खरेडा टोंक।

प्रस्तुति