🌾🌼 …नमन!
शहीद रामवीर गुर्जर को, जो था सबसे कम उम्र का गुर्जर आंदोलन का बलिदानी और मां-बाप की इकलौती संतान।
2007 के पीपलखेड़ा गुर्जर आरक्षण आंदोलन में जब पुलिस की पहली गोलियां चलीं, उनमें से एक गोली सीधे गांव के 17-18 वर्षीय युवक रामवीर पोसवाल की छाती चीर गई। वह सुबह की सैर से लौट रहा था — निहत्था, निर्दोष — पर फिर भी सत्ता की बर्बरता का शिकार बना।
रामवीर न केवल आंदोलन का सबसे कम उम्र का शहीद था, बल्कि अपने मां-बाप की दुनिया भी।
शादी हो चुकी थी, बाल विवाह। और बस 1-2 महीने पहले ही उसकी नवविवाहिता उसके घर आई थी।
लेकिन, इसके पहले कि वे जीवन का कोई भी सपना साथ जी पाते — एक गोली ने सब कुछ छीन लिया।
वह गोली केवल रामवीर की हत्या नहीं थी —
वह उसके माता-पिता की उम्मीदों की हत्या थी,
उस नवविवाहिता की मांग की हत्या थी,
उस दामाद की हत्या थी जिसे एक नई बेटी ने अपना मान लिया था,
वह लोकतंत्र की हत्या थी,
BJP के चुनावी वादों की हत्या थी,
मानवता और मानव अधिकारों की हत्या थी —
और सबसे कड़वी बात,
वह इस देश के भविष्य की हत्या थी।
रामवीर अपनी मां-बाप की इकलौती संतान था।
इस एक गोली ने एक वंश को ही मिटा दिया —
उन सपनों को जला दिया जो आने वाली नस्लों के लिए देखे गए थे।
यह गोली एक परिवार नहीं, एक पीढ़ी का अंत थी।
रामवीर आज भी हमारे दिलों में ज़िंदा है।
लेकिन सवाल ये है —
जो इतने चेहरे, इतने भविष्य, इतने विश्वास इस एक गोली से मारे गए — उनकी भरपाई कैसे होगी?
क्या कथित राष्ट्रवादी, हिन्दूवादी BJP कभी इसका उत्तर देगी?
या फिर अपने इस जघन्य, ऐतिहासिक अपराध पर चुप्पी साधे रहेगी?
क्योंकि यह आंदोलन तो उसी वादे की वादाखिलाफी से जन्मा था, जो 2003 के विधानसभा चुनावों में भाजपा ने गुर्जर समाज से किया था।
सृजक
🌹समाज विकास अनुसंधान सभा
सूचना स्रोत
श्री भगवानदास मंजीत
पाठ्य विस्तार
चैट जीपीटी
प्रस्तुति