नरका में कुण-कुण जासी,
नरका में कुण-कुण जासी।
जो मन में रखे उदासी,
जो रोटी खावे वासी।
बहू को बनावे दासी,
जो जीवों के लगावे फांसी।।
नरका में वही-वही जासी,
नरका में कुण-कुण जासी..।।१।।
घर का उदास परिवेश (देखें चित्र)
नरका में कुण-कुण जासी,
जो चोरी करणे जावे,
एक दूजे का धन खावे,
जो पराई नार सतावे,
अपणी बेटी नाही पढ़ावे।।
नरका में वही-वही जासी,
नरका में कुण-कुण जासी..।।२।।
समाज में असंगत कार्य (देखें चित्र)
नरका में कुण-कुण जासी,
जो ईश्वर को नाही ध्यावे,
पित्रो का तर्पण नाही करावे,
जो गीता का ज्ञान भुलावे,
जो शराब को गले लगावे।।
नरका में वही-वही जासी,
नरका में कुण-कुण जासी ..।।३।।
मद्यपान सभी के लिए नुकसानदेय (देखें चित्र)
नरका में कुण-कुण जासी,
जो पेड़ काटकर घर पर लाये,
जो बूढ़े बाप को वृद्धाश्रम भिजवाय।
जो जनता को हर पल सताय,
जो निर्बल पर अपना बल दिखाय।।
नरका में वही-वही जासी,
नरका में कुण-कुण जासी ..।।४।।
निरंतर आरोपित करने का प्रयास (देखें चित्र)
नरका में कुण-कुण जासी,
मुकेश कुमावत तुम्हें रीति नीति बतावे,
जो अच्छे कर्म करे, नरका में नाही जावे।
जैसा-जैसा कर्म करे, वैसा-वैसा फल पावे,
मानव बनकर, हरदम मानवता दिखलावे।।
नरका में वह कभी नहीं जासी,
नरका में कुण-कुण जासी ..।।५।।
साहचर्य ही सर्वोत्तम (देखें चित्र)
रचनाकार
कवि मुकेश कुमावत ‘मंगल’
टोंक
प्रस्तुति