पहलगाम

पहलगाम

पहलगाम का जनसंहार

कुछ भेज पाक ने हत्यारे लगता भारत को ललकारा।

अब पहलगाम में उस कायर ने हिन्दू ही चुन-चुन मारा।

 

जो गये घूमने सैलानी परिवार सहित हंसते गाते।

कुछ नवल युगल ऐसे भी थे जो दिखे अधिक ही हर्षाते।

कश्मीर सदा से अपना है वहाँ आना जाना पाप नहीं?

जो वहाँ घूमने जाता है देने की करता नाप नहीं।

उन निर्दोषों को दुष्टों ने बिन कारण ही है संहारा।

अब पहलगाम में उस कायर ने हिन्दू ही चुन-चुन मारा।।१।।

 

वहाँ महिलाएं चीखीं बिलखीं पर तरस नहीं उसको आया।

बच्चों की मोहक किलकारी को चीखों में बदली पाया।

वहाँ घास बिछी थी हरी नरम उसको ही रक्तिम कर डाला?

वहाँ सभी सुनहरे सपनों को उसने है काल बना डाला।

जो गया वहाँ पर मार दिया वो भारत माँ का है प्यारा।

अब पहलगाम में उस कायर ने हिन्दू ही चुन-चुन मारा।।२।।

 

खुद पाक जगत ने देखा है वो लिये कटोरा घूम रहा।

फिर भी आंतकी बना हुआ वो मचा है निर्मम घूम रहा।

वो जो भी पापी हत्यारे कोई बचा नहीं उनको सकता।

वो कहीं छुपे हों जग भर में कोई छुपा नहीं उनको सकता।

अब काल बने भारत सैनिक ने हत्यारों को हुंकारा।

अब पहलगाम में उस कायर ने हिन्दू ही चुन-चुन मारा।।३।।

 

जब-जब उसने भारत छेड़ा वो दुबका बिल में पाया है,

अपनी काली करतू‌तों से वो बाज न अब तक आया है।

भारत ने क्षमा किया अब तक पर अब न कोई क्षमा होगी।

जो हूर बहत्तर बैठी हैं उनसे अब भेंट शीघ्र होगी।

ये रक्त बहा करके घाटी में उसने है काल पुकारा।

अब पहलगाम में उस कायर ने हिन्दू ही चुन-चुन मारा।।४।।

रचनाकार

कृष्णदत्त शर्मा ‘कृष्ण’

प्रस्तुति