प्यार और धन दौलत

प्यार और धन दौलत

सार छंद
।। प्यार।।
अपने ही जन हैं ये सारे, नफ़रत क्यों फिर करना।
करों बात मन की तुम सारी, नहीं किसी से डरना।

प्यार दिलों में छाता है जब, रिमझिम बारिश होती,
हरियाली की खेती में फिर, चमके सब बन मोती।
लुटा प्यार दोनों हाथों से, दुखड़े सबके हरना।
अपने ही जन हैं ये सारे, नफ़रत क्यों फिर करना।।

देह एक अरु रक्त लाल है, सबका ही तुम जानो,
ईश्वर एक दुनिया में है, उसको भी पहचानो।
दुखियों के ज़ख्मों को प्यारे, प्यार जताकर भरना,
अपने ही जन हैं ये सारे, नफ़रत क्यों फिर करना।।

सार छंद

।। धन-दौलत।।

धन-दौलत ही माय बाप है, सबने ऐसा माना,

प्यार प्रेम भी है दुनिया में, कभी नहीं पहचाना।

 

धन के पीछे भाग रहा हैं, इस दुनिया में मानव,

लोक लाज सब छोड़ जहां की, बना हुआ है दानव।

अपने को ही खुदा समझ नर, देता सबको ताना,

धन-दौलत ही माय बाप है, सबने ऐसा माना।

 

महल बनाया चुन- चुन पैसा, अपनों को वह भूला,

किया क़त्ल रिश्तों का उसने, मन ही मन फिर फूला।

अंत समय आया जीवन का, जीने की फिर ठाना,

धन-दौलत ही माय बाप है, सबने ऐसा माना।

 

चोरी करता फिरा जगत में, डोन बना फिर ताजा,

सांठ -गांठ से करी कमाई, बना यहां का राजा।

न्याय किया फिर राजा बनकर, जोड़ा ताना बाना,

धन-दौलत ही माय बाप है, सबने ऐसा माना।

 

सच क्या है जीवन का प्यारे, इस दुनिया में जानो,

संत जनों की वाणी को भी, ध्यान लगा पहचानो।

ये समय बदलता रहता है, सभी जनों ने जाना,

धन-दौलत ही माय बाप है, सबने ऐसा माना।

रचनाकार

श्योराज बम्बेरवाल ‘सेवक’

मालपुरा

प्रस्तुति