मात्राभार 16/12
चरणांत 2,2
सार छंद
शताब्दी ज्योति
संघ शताब्दी ज्योति प्रखर है,
परहित पावन गाथा।
नव चेतन के दीप जलाकर,
लोग झुकाए माथा ।।
शाखा शाखा अनुशासन का,
स्वर मधुर है गाया।
जहाँ संघ का सेवक होता,
वहाँ शांति का साया।।
संघ प्रीति की रीति निराली,
युवा हृदय में ज्वाला।
सिंह नाद से जाग उठा फिर,
मोहन मुरली वाला ।।
नव संकल्प के फूल खिलाएँ,
मातृभूमि मन भाए।
संघ शताब्दी का उजियारा,
जीवन गढ़ता जाए ।।
पावन पथ का मंत्र गूँजता,
सेवा ही है पूजा।
सैनिक जैसा संयम देखा,
और न कोई दूजा ।।
राष्ट्र धर्म से बड़ा न कोई
जय-जय भारत माता।
राष्ट्र जागरण का यह अवसर,
इससे जोड़ा नाता ।।
माता वसुधा बसे हृदय में
पावन वंदन बेला।
शौर्य सिक्त संकल्पों के बल,
तेज प्रभा का मेला ।।
त्याग तपस्या मौन साधना,
कर्म पथ अनुरागी।
राष्ट्र धर्म संस्कृति की रक्षा
एक लगन है लागी ।।
जब-जब भारत संकट आया,
डगमग थीं दीवारें।
जब सेवक बन संघ उठा तो,
साथ खड़ी सरकारें ।।
“मै हूँ भारत, भारत मुझमें”
सत्य स्वयं कह जाता।
जब तक प्राण साँस में बसते,
वंदे भारत गाता।।
स्वर्ण शताब्दी का यह शुभ
दिन,
मानवता का बाना ।
संघ ध्वज के रंगों में यह,
विश्व शान्ति का गाना ।।
विश्व बने परिवार हमारा,
हृदयों में जब ढालें।
राष्ट्र भक्ति की अखण्ड धड़कन,
अरि की टूटी चालें ।।
भारत-माता पावन आँचल,
हम पर छाया रखना।
सेवा, श्रद्धा, शौर्य-दीप में,
नित उजियारा रखना।।
हमसे हर क्षण कर्म निरंतर,
धर्म-पथ न छूटे।
राष्ट्र-प्रेम की अखंड ज्वाला,
जीवन भर ये फूटे।।
संघ-ध्वजा की गौरव-लहरें,
हृदय-क्षितिज तक जाएँ।
गंग शताब्दी की मंदाकिनी,
मधु रस नित बरसाएँ।।
जय-जय भारत माता वंदन,
जय-जय संस्कृति छाया।
जननी! तेरे चरण-कमल में,
हमने जीवन पाया ।।
सूचना स्रोत

प्रस्तुति

