कहानी

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फैसला

“कांग्रेच्यूलेशन रत्ना! वेलडन! तुम्हारी मेहनत रंग लाई, तुम्हारी पीएचडी को ‘ए ग्रेड’ मिला है.” रत्ना को पीएचडी एवार्ड होने पर उसके गाइड ने बधाई देते हुए कहा.
“थैंक्यू सर ! यह आप सबके सहयोग और मेरे पिता का आशीर्वाद है.”
“वाकई तुमने बहुत मेहनत की है आंकड़े जुटाने में.”
“वैसे तुम्हारे पिता क्या करते हैं रत्ना?” पास ही खड़ी प्रोफ़ेसर निशा ने पूछा.
“जी उनकी मार्किट में किराना दुकान है…मैं उनकी इकलौती बेटी हूँ.”
“शाबास तब तो दोहरी बधाई बनती है…तुमने अपने पिता को प्राउड फील कराया.”
“थैंक्स मेम.” मध्य प्रदेश सागर की केन्द्रीय यूनिवर्सिटी से रत्ना को पीएचडी अवॉर्ड होने पर उसके गाइड प्रोफेसर मिश्रा और उनकी कलिग प्रोफेसर निशा रत्ना के साथ कैंटीन में बैठकर चाय पी रहे हैं.
“वैसे प्रोफेसर मिश्रा, रत्ना को देखकर लगता नहीं कि वह ऐसे चुनौतीपूर्ण विषय को लेकर बाजी मार जाएगी.”
“इसलिए तो कहते हैं किसी को उसके आवरण से मत तोलो. तुमने क्या सोचा सांवली, दुबली पतली सी. दो चोटी डालने वाली कॉलेज के ग्लैमर से दूर रत्ना भला कैसे कर पाएगी … मिस निशा इन कामों के लिए डेडिकेशन की आवश्यकता होती है और वो देख लिया था मैंने रत्ना में, तभी तो उसे अपने गाइडेंस में लिया.”
“इस आत्मविश्वास को आगे भी बनाये रखना रत्ना.” प्रोफेसर निशा ने रत्ना की पीठ थपथपाते हुए कहा.
“जी मेम …यह आत्मविश्वास ही मेरे पिता की विरासत है जो उन्होंने मुझे दी है.” कहते हुए रत्ना ने अपने प्रोफेसर से विदा ली क्योंकि उसके साथी भी उसे बधाई देने के लिए उसका इंतजार कर रहे थे.
“अरे भई ! अपने प्रोफेसर से फुर्सत मिल गई हो तो हमारी बधाई भी स्वीकार करो रत्ना ….”
“जरूर मित्रो, आप सभी का साथ मेरी ऊर्जा है, और मैं चाहूंगी यह ऊर्जा हमेशा मुझे मिलती रहे.” रत्ना ने विनम्रता से सबको उत्तर दिया.
“भई, रत्ना शुरू से ही होनहार है, राजनीतिशास्त्र में प्रथम श्रेणी में एम.ए.और फिर ‘ए ग्रेड’ में पीएचडी भविष्य उज्ज्वल है तुम्हारा. हमारी तरफ से भी बहुत बधाई.” निशिकांत बोला.
“थैंक्यू निशिकांत.”
“Wow! रत्ना आज से तुम्हारे नाम के आगे डॉक्टर लग गया है…डॉ रत्ना मित्तल.” सुरेखा बोली.
“वैसे क्या विषय था तुम्हारे शोध का?”
“सुरेखा ! तुम भी न …भूल गईं अभी कुछ समय पहले ही तो पूछा था तुमने.”
“हाँ भई अब हमारे पास इतना दिमाग कहाँ …होता तो हम भी न बन जाते डाक्टर.” सुरेखा ने मजाक में कहा.
“वैसे मेरे शोध का विषय था ‘प्रजातंत्र में राजनीतिक भ्रष्टाचार और सोशल मीडिया की भूमिका’.”
“वाह ! बहुत प्रासंगिक विषय है.”
“हाँ, तुमने तो प्रजातंत्र, राजनीति और सोशल मीडिया तीनों को कटघरे में ले लिए.” कामिनी बोली.
“कामिनी! प्रजातंत्र को नहीं …प्रजातंत्र में मेरी गहरी आस्था है किन्तु राजनीति ने जिस तरह प्रजातंत्र का चेहरा बदरंग कर उस पर भ्रष्टाचार का लेप चढ़ाया है न… इससे जनता को रूबरू कराना बहुत आवश्यक है.”
“अच्छा यह बताओ अब आगे क्या सोचा है, कौन-सा कॉलेज ज्वाइन करोगी?” रोहन ने पूछा |
“हाँ भई, जिस कॉलेज में चाहेगी जॉब पक्का है आखिर प्रोफ़ेसर मिश्रा की स्टूडेंट है, सिक्का चलता है प्रोफेसर मिश्रा का.”
“नहीं कामिनी, मैं कोई कॉलेज ज्वाइन नहीं कर रही.”
“मगर क्यों!!” इस बार सभी मित्र चौंक पड़े.
“राजनीतिशास्त्र में पीएचडी करके क्या घर बैठने का इरादा है या शादी करके गृहस्थी …या पापा की शॉप संभालोगी?”
“ना ही मैं घर बैठूंगी; ना ही पापा की शॉप संभालने का इरादा है, हाँ वक्त आने पर शादी के बारे में भी सोचा जायेगा…लेकिन अभी नहीं.”
“फिर?”
“मैं राजनीति में जाना चाहती हूँ.” रत्ना आत्मविश्वास भरी आवाज में बोली.
“राजनीति में….! दिमाग तो ठीक है तेरा?” सब लोग एक साथ बोले.
“राजनीति का नाम सुनकर इतना हैरान क्यों हो गए तुम लोग?”
“क्या तुम जानती नहीं राजनीति में कितना कीचड़ है?” रोहन ने हैरान होकर कहा.
“सही कहा तुमने, किन्तु यह कीचड़ किसी को तो साफ करना ही होगा न रोहन.” रत्ना शांत भाव से बोली.
“मगर इसके लिए क्या एक तू ही रह गई है…क्यों अपनी जिन्दगी से खिलवाड़ कर रही है…अरे मस्त कॉलेज में प्रोफेसरी झाड़.” कामिनी बोली.
“मैंने निर्णय कर लिया है.” रत्ना की आवाज में वही बल था. “अपने पापा से बात की इस संबंध में? अरे तू उनकी इकलौती संतान है.” कामिनी ने कहा.                                      “हाँ की है.”

“रोका नहीं उन्होंने?”
“नहीं, पापा ने कहा मैंने तुम्हें शिक्षा ही इसलिए दिलाई है कि तुम अपना उचित-अनुचित समझ सको.अगर तुम्हें यही उचित लगता है तो मुझे कोई एतराज नहीं…मैं तुम्हारे हर फैसले में तुम्हारे साथ हूँ.”
“फिर भी रत्ना मेरे ख्याल से यह तुम्हारा पागलपन है.”
“हाँ रत्ना, एक बार फिर से सोच लो, यह राजनीति काजल की वह कोठरी है इसमें जो भी जाता है उसे कालिख लग ही जाती है.एक बार उस दलदल में फंसने के बाद निकलना मुश्किल हो जाता है.”
“मैं ऐसा नहीं मानती और फिर दलदल को साफ करने के लिए दलदल में उतरना ही पड़ता है न, यदि सभी युवा इसी तरह सोचते रहे तो यह राजनीति व्यभिचारियों और अपराधियों का अड्डा बन कर रह जाएगी. आखिर इस बीमार राजनीति का वैक्सीन हम युवाओं को ही तो खोजना है.” रत्ना ने विश्वास के साथ जवाब दिया.

अपनी मंजिल की ओर रत्ना का पहला कदम बढ़ चुका था. कारण राजनीति का एक महत्वपूर्ण अवसर खुद चलकर उसकी झोली में आ गिरा, हुआ दरअसल यह कि बदुआ इलाके में एक दलित महिला के साथ अभद्र व्यवहार किये जाने की खबर सुर्ख़ियों में बनी. पीडिता का परिवार रत्ना के पास पहुंचा.

“दीदी! आप हमारी मदद कीजिये, दरअसल शहर का गुंडा पप्पू भैय्या हमारे परिवार की बहू पर बुरी नीयत रखे है. कुछ कहें तो दादागिरी पर उतारू है, प्रभावशाली है राजनीति में सिक्का चलता है उसका, अब आप ही हमारी सहायता कर सकती हैं.” यद्यपि रत्ना का यह कदम राजनीति प्रेरित नहीं था केवल मानवता के नाते उसने पीड़िता की सहायता के लिए पप्पू भैया को आड़े हाथों लिया. इसका प्रभाव यह हुआ कि शहर में रत्ना की ऐसी इमेज बन गई कि कोई भी राजनीतिक पार्टी उससे पंगा लेकर अपने लिए गड्ढा खोदना नहीं चाहती थी. सो सभी सत्ताधारियों ने हाथ पीछे खींच लिए, जब सत्ता का आश्रय छिन जाय तो सत्ता की उँगलियों पर नाचने वाले कानून की क्या ताकत जो पप्पू को सहारा दे. परिणाम सीआरपीसी की धारा १५४ के तहत एफ आई आर दर्ज कर पप्पू भैया को हवालात का रस्ता दिखा दिया रत्ना ने.

रत्ना के क़दमों को राजनीति में ठोस आधार देने यह घटना काफी थी. अब तो रत्ना पूरे सागर जिले की दीदी हो गई. लोग दिल से उसका सम्मान करते, उसकी बात को ध्यान से सुनते. वह अपनी बात जनता तक पहुंचाने के लिए मंचों का प्रयोग करती. जहाँ कहीं कोई आयोजन होता वह वहाँ जाकर सबके बीच अपनी बात रख उनसे समर्थन मांगती, उन्हें भ्रष्टाचार के विरोध हेतु आगाह करती.

“प्यारे देशवासियो! आज राजनीति अवसरवादिता, गुटबंदी, झंडा बदलू प्रवृत्ति और नेताओं की व्यभिचारिता, स्वार्थ साधना, चरित्रगत मूल्यों की गिरावट, असामाजिक तत्वों के गठबंधन से पीड़ित है. इसका दुष्परिणाम केवल और केवल आम जनता को झेलना पड़ रहा है. अफ़सोस ये पथभ्रष्ट जिनके मन में तनिक देश प्रेम नहीं; वे देश की बागडोर अपने हाथों में लिए बैठे हैं. भला देश कैसे कोई सही दिशा पायेगा?” रत्ना कुशल वक्ता है, भाषा पर उसका पूरा अधिकार है, अपनी बात को श्रोताओं के बीच किस तरह रखना है यह कला है उसमें, उस पर उसके दिल की सच्चाई को भी कहीं न कहीं जनता देख और समझ पा रही थी. इसी का परिणाम है कि उसे शीघ्र ही जनता का भरपूर समर्थन मिलने लगा. उसकी ख्याति दिल्ली के दरबार तक पहुँच गई जिससे अपोजिट पार्टियों के आला कमान की फटकार पड़ने लगी अपनी पार्टी के स्थानीय नेताओं को.

“ससुर के नातियों क्या नसा करके पड़े हो …अरे उ कल की छोकरी आकर चार दिन में जनता के सर पर नाचने लगी, का इ बेर पार्टी का भट्टा बैठाने का इरादा है ?” उसके प्रभुत्व को स्थापित होता देख दोनों विपक्षी पार्टियों (नेशनल पार्टी और देश हिताय पार्टी ) में खलबली मच गई. राजनीति का सबसे सस्ता फंडा है अगर कोई दल मजबूत लग रहा है तो अपनी पार्टी छोड़कर उससे जा मिलो या उसे अपनी पार्टी में मिला लो. रत्ना आखिर एक स्त्री है स्त्री की सत्ता स्वीकारना पुरुषों के लिए यूँ भी पाच्य नहीं. इसलिए दोनों पक्षों ने अपने ख़ुफ़िया दलाल रत्ना के पिता के पास भेजना आरम्भ कर दिए. जो जाकर उन्हें गाहे – बगाहे मशवरा देने लगे.

“उ का है न मित्तल साहब हम तोहरा के बहुत सालन से जानत है, इ राजनीति औरतन के बस की बात नाही, अरे तुम तो सब जानत हो …फिर भी तोहार मन है कि बिटिया को राजनीति में लाना है तो हम नेशनल पार्टी वालन से बात करेंगे उ हमार कहने से बिटिया को अपनी पार्टी में सामिल कर लेंगे.”

“आप चिंता न करें मुरारी भैया, मेरी बिटिया समझदार है, अगर उसे लगेगा कि किसी के सहयोग की आवश्यकता है तो वह सबसे पहले मुझसे कहेगी.” मित्तल साहब का एक ही जवाब काफी होता इन दलालों को . .

“अरे भैया तनिक समझो, जइसन घर में बिना मरद के औरत की कोई बखत नाही वैसन बिना पार्टी के इकल्ले आदमी की कोई पूछ परख नाही. तुम कहो तो हम बात करेंगे रामकिशन जी से …हमाये अच्छे मित्र हैं.” उधर देश हिताय पार्टी से भी किसी न किसी रूप में लोग रत्ना के घर आने लगे.

“मेडम ! आप जैसे होनहार नेताओं का हमारी पार्टी में स्वागत है, हमारी पार्टी महिलाओं को सम्मान देना जाती है, आप हमारी पार्टी में शामिल हो जाइए, आपको हमारी पार्टी में वही सम्मान मिलेगा जो सुषमा स्वराज को अपनी पार्टी में मिला था. हम प्रतिभा की कदर करना जानते हैं.” रत्ना ने राजनीतिशास्त्र में यूँ ही डिग्री नहीं ली थी, वह उन सबके भीतर छिपी चालाकी को समझ पा रही थी. यह दोनों पार्टियाँ महज उसे मोहरे की तरह इस्तेमाल करना चाहती हैं, उनके साथ जुड़ना यानी अपनी साफ-सुथरी छवि को नष्ट करना है और वह अपनी आन- बान- शान और स्वाभिमान से किसी भी कीमत पर समझौता नहीं करेगी. अतः उसने निर्णय लिया कि वह स्वतंत्र प्रत्याशी के रूप में चुनाव में खड़ी होगी. यद्यपि उसके पास संसाधनों का अभाव था फिर भी उसने अपनी मुहीम जारी रखी.

“मेरी भोली जनता, ये महंगाई कहीं से आई नहीं है ये लाई गई है तथाकथित नेताओं के द्वारा. कारण नेताओं को वीआईपी सुविधाएँ चाहिए, कहीं जायेंगे तो पूरी पायलट सुविधा चाहिए, दस-दस गाड़ियों का काफिला साथ चलेगा, हथियारबंद कमांडर साथ चलेंगे. अरे क्यों भई…? इतना ही डर लगता है तो क्यों आये हो राजनीति में …? दौलत कमाने? जनता की गाढ़ी कमाई पर ऐश करने? सोचो जरा, कहाँ से होंगे उनके खर्चे पूरे, देश की जनता है न मुर्गा बनाने को. कभी सोचा है, एक कर्मचारी जो संस्था को पूरी उम्र दे देता है उसकी पेंशन हटा दी गई और नेता …यदि वो एक दिन को पार्षद भी बन जाए उनकी आजन्म पेंशन शुरू हो जाती है …इतना ही नहीं वह कई -कई मुद्दों से पेंशन ले रहे हैं. क्या यह सरासर जनता पर अत्याचार नहीं…? उनकी कमाई पर सीधे -सीधे डाका नहीं …? सारे पेट्रोल पम्प, स्कूल, प्रायवेट अस्पतालों में उनके शेयर हैं, जबकि वे अपने को जनता का सेवक कहते हैं. जनता को अब आगे आना होगा, मालिक है तो मालिकाना हक़ जतलाना होगा. राजनीति को वापस सुधार की आवश्यकता है। देश की जनता में बहुत ताकत है बशर्ते वह अपनी ताकत को समझे। “रत्ना की यह आवाज बरसों से जन-जन की आवाज थी बस उसमें वाणी नहीं थी. जो मिली रत्ना से, सो जनसैलाब रत्ना की ओर उमड़ पड़ा. उसकी छवि शहर की दबंग और जनता की सच्ची सेवक के रूप में बनते देख विपक्षी बौखला रहे थे.

इसी बीच मकरोनिया इलाके में एक कालोनाइज़र ने लोभ पकड़ा, कालोनी बनाते समय उसने कालोनीवासियों को एक पार्क बनाकर देने का वादा किया था. किन्तु अब उसे पैसे का लालच हो आया, लगा पार्क की जमीन में कम से कम बीस दुकान निकल सकती हैं. एक-एक दुकान अगर 5-5 लाख में भी गई तो वह मालामाल हो जायेगा. कालोनी वालों को पता चलते ही विरोध शुरू हो गया, जैसे तैसे वह 25 बाय 25 का एक प्लाट पार्क के लिए देने को तैयार हुआ. रत्ना दीदी जिन्दाबाद,
“मिस्टर पॉल ! आपने अब तक कितनी कालोनी बसाई हैं?”
“जी मैं …मैं कई कालोनी बना चुका हूँ.”
“तब तो आपको यह जानकारी होगी कि कालोनी का नक्शा पास करते समय जो जमीन आपने पार्क के लिए दर्शाई है, पार्क विनिमय और नियंत्रण नियमावली 2005 के अनुसार वहाँ आप दुकान तो क्या एक खम्बा भी अपना नहीं गाड़ सकते.” मरता क्या न करता, कानून के आगे हार मानना पड़ा. पॉल की सारी उम्मीदों पर पानी फिर गया और रत्ना दीदी का कद एक सीढी और बढ़ गया. उधर विपक्षी आलाकमान ने भी अपने कार्यकर्ताओं की नाक में दम कर उन्हें निकम्मा घोषित कर दिया था.
“अरे हाथ में चूड़ी पहनकर बैठ जाओ ससुर के नातियों, एक औरत नहीं सम्हाली जा रही तुम  से.”
“क्या करें सर उसे कई प्रलोभन दिए मगर वो तो कृष्ण की पक्की भक्त, गीता के निष्काम कर्म का प्रण लिए बैठी है ससुरी …टस से मस नहीं होती.”
“नहीं होती तो उड़ा दो साली को …निकम्मो! इंतजार काय बात का कर रए.” आलाकमान से ग्रीन चिट मिल चुकी थी विपक्षियों को. इधर चुनावी मौसम शुरू हो गया. रत्ना ने स्वतंत्र रूप से मैदान में उतरने का निर्णय ले लिया. किन्तु रत्ना की माँ अपने बेटी पर मंडरा रहे खतरे के साये का अंदाजा लगा रही थी.
“सुनो जी आप रोकते क्यों नहीं रत्ना को …जाने क्या जूनून चढ़ा हुआ है उसके सर …अरे इन राजनेताओं से पंगा लेकर कोई रह पाया है. जानते नहीं वो भर्ती वाला केस मंत्री के खिलाफ जिस- जिस ने आवाज उठाई उसका नामोनिशान नहीं मिला.”
“सुशीला ! अगर सब लोग इसी तरह खतरा भांप कर एक ओर हो जायेंगे तो भ्रष्टाचार की जड़ को और बल मिलेगा.”
“अरे, मगर देश की भलाई का ठेका क्या अकेले रत्ना ने ही लिया है?”
“सोचो आजादी के दौरान अगर हर माँ ऐसा सोचती तो भला क्या देश अंग्रेजों की गुलामी से आजाद हो पाता?” रत्ना की माँ जानती थी रत्ना को पिता की सहमति है इसलिए वो उनकी बात तो सुनने से रही.
रत्ना भी जानती थी कि उसने किस संघर्ष की राह को चुना है. विपक्षी उसे बड़ी चुनौती के रूप में देख रहे थे. किसी भी कीमत पर उसके सिर जीत का सेहरा नहीं देखना चाहते थे मगर कैसे …? क्या जतन हो कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे?

ऐसे समय में दोनों पार्टी अपनी -अपनी शत्रुता भुला एक हो गयीं. इसी से अंदाजा लगाया जा सकता था कि रत्ना का किरदार कितना वजनदार है.
“भाई रामकिशन जी, ये कल की आई लौंडिया कैसे जनता के सिर चढ़कर बोल रही है सभाओं में चौराहों पर उसी के नाम के डंके बज रहे हैं।”
“अरे ! तो तुम काहे चिंता करते हो यार भवानी सिंह एक लौंडिया से डर गए?”
“उसे हल्के में लेना भूल होगी बड़े भैया, कहीं महंगा ना पड़ जाए?”
“महंगा तो उसे पड़ेगा, चार जमात पढ़ी वो छोकरी हमसे पेंच लड़ाने चली है, जानती नहीं 22 साल से राजनीति में झख नहीं मार रये, देख लेंगे ससुरी को.” यह कोरी धमकी नहीं थी रामकिशन और भवानी की. आरंभ हुई रत्ना की अग्नि परीक्षा, वह जिस मंच से संबोधन करने जाती कभी उसके मंच पर रहते मंच टूट जाता, कभी रत्ना का भाषण सुन रही जनता के बीच कोई धमाका हो जाता और जनता में दहशत फैल जाती। लेकिन ऐसे मुश्किल समय में रत्ना के पिता हमेशा मंच के पास बेटी का हौसला बन खड़े रहते. इधर आलम यह था कि कभी उसके द्वारा कहे किसी शब्द पर राजनीति शुरू हो जाती और खरीदी हुई मीडिया उसे खूब उछालती. यहाँ तक कि रत्ना के अतीत को खंगाला जाने लगा, वह अपने कॉलेज टाइम में किससे मिला करती थी, किसके साथ उसका उठना-बैठना था. कोई सुराग न भी मिला तो भी राई का पहाड़ बनाने, तिल का ताड़ बनाने में भला राजनीतिज्ञों से बढ़कर कौन होगा?

रत्ना के अतीत के महासागर में गहरे डुबकी लगाने एक टीम तैयार कर दी गई; जिन पर दबाव था खाली हाथ ऊपर आने से बेहतर होगा उसी समन्दर में डूबकर मर जाना | लेकिन रत्ना के इश्क की किताब तो कभी खुली ही नहीं उसके सभी सफे कोरे ही रहे | वह तो किसी साधक की भांति एकनिष्ठ अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर थी सो भटकाव होता भी कैसे ? जब कोई सूत्र हाथ नहीं आया तो खोजी दस्ते ने परिवार के किसी आयोजन में बैठकर हंसी मजाक करते समूह से रत्ना और उसके चचेरे भाई शेखर की फोटो क्रॉप कर उसी को मोहरे की तरह इस्तेमाल कर लिया ,यह है देश के चौथे स्तम्भ कहे जाने वाली मीडिया का छिछोरा रूप | किसी ने ठीक कहा, राजनीति जिसे चाहे अर्श से फर्श पर ला बैठाये ,जिसे चाहे फर्श से उठा कर अर्श पर पहुंचा दे | सारे दांव पेंच है राजनीति की पोटली में | स्वयं रत्ना भी न जान पाई कि ये शेखर के साथ उन्मुक्त हंसी हँसते हुए उसकी कौन सी तस्वीर है और इसे कब किसने कैमरे का निशाना बनाया ! रत्ना के उजले चरित्र की चादर पर कीचड़ उछालना शुरू कर दिया | उनके इशारों पर नाचने वाली प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया ने भी इस हवाई रिश्ते को बहुत हवा दी | सरेराह रत्ना और उसके चचेरे भाई के नाम के पोस्टर लगाये गये | ‘चरित्र की दागदार चादर लेकर चली बन्नो देश को उजलाने’ स्थानीय अख़बारों के पन्नों में बड़े- बड़े अक्षरों में लाइन्स आने लगी | परिजन भी तनाव में आ गये आखिर बेटी के भविष्य का सवाल है एक बार इज्जत की धज्जियाँ उड़ गई तो कोई हाथ थामने वाला न मिलेगा | किंतु जाने किस मिटटी की बनी थी रत्ना और उसके पापा कि रुकने का नाम नहीं लेती उसकी आवाज में वही दमखम था,
“यह मुट्ठी भर नेता देश की इतनी विशाल जनता पर अन्याय कर रहे हैं और जनता चुप बैठी है अगर अब भी न जागी जनता तो उसे हमेशा, हमेशा के लिए खामोश रह जाना होगा| सोचो क्या हमारे पूर्वजों ने इसी गुलामी के लिए आजादी की लड़ाई लड़ी थी कि हम अंग्रेजों की गुलामी से आजाद होकर इनके गुलाम हो जाएँ ?”
“अरे !अरे !यह हरामखोर तो जनचेतना का बीज बो रही है ,नाक में दम कर रखा है ससुरी ने .”भवानी मुट्ठी भींचते हुए बोला | रत्ना को मात देने के लिए विपक्षी पानी की तरह पैसा बहा रहे थे | बड़े-बड़े फिल्म स्टार को मंच पर उतारा गया, साड़ी, कंबल,शराब बंट रही थी, नोट- वोट की राजनीति हो रही थी, लाउडस्पीकर पर उनकी यश कीर्ति गाई जा रही थी | शहर में गर्मागर्मी का माहोल था | तभी मित्तल साहब की दुकान पर उनके पुराने मित्र आये ,बातों ही बातों में पोस्टर का राज उन्होंने बताया कि राजन भाई वो अपने सुमित का बेटा है राजनीति की नजर कितनी गन्दी होती है वे रिश्तों की गरिमा क्या जाने|

“तुम चिंता न करो मित्तल जी मेरे बेटे ने जेएनयू से पत्रकारिता में एम् जे किया है ,मैं उससे बात करता हूँ |’ राजन के बेटे ने इन पोस्टर्स के नाम पर उछाली कीचड़ का जब सिरे से पर्दा फाश किया तो विपक्षी एक बार फिर चारो खाने चित्त हो गए | लेकिन जिनके नसों में भ्रष्टाचार का लहू बह रहा हो वे भला कैसे हर मान लें…कैसे चुप हो जाएँ ?
वे जानते थे रत्ना के पास आर्थिक संसाधनों का अभाव है इसलिए उन्होंने इसी को अपना हथियार बना जनता को खरीदना चाहा | रही सही कसर आम जनता के बीच सभा में धमाका कर पूरी कर दी गई | ताकि जनता के बीच में दहशत फैल जाए और कोई भी रत्ना की सभा में पहुंचने की हिम्मत ना कर सके, इससे रत्ना की हिम्मत टूट जाएगी | वो भूल गए सच की जड़ें गहरी होती है फिर जाको राखे साइयां मार सके न कोई | रत्ना भी मानो सिर पर कफन बांध कर इस मैदान पर उतरी थी तमाम विसंगतियों के बावजूद चुनौतियों को पार करते हुए उसके कदम अपनी मंजिल की ओर बढ़ रहे थे इस समय उसके कदम से कदमताल अगर कोई अनवरत कर रहा था तो वो थे उसके पिता मित्तल साहब …अपनी दुकान को मंगल कर जब तब बेटी के अंग रक्षक बन उसके साथ रहते | अलबत्ता अब उसकी चुनाव सभा में जनता की उपस्थिति ना के बराबर होती | उधर रामकिशन और भवानी अपनी जीत का जश्न मना रहे थे,

“देखा ई राजनीति है भवानी, कल की छोकरी हमसे मुकाबला करने चली थी मुंह के बल गिर गई ससुरी|” रामकिशन पेग का घूंट गले में उतारते हुए बोला |
“आपका अंदाजा सही निकला भवानी भाई, भारत की जनता ना बड़ी बेवकूफ है, डरपोक है ससुरी, बम का धमाका हुआ नहीं कि चूहे की तरह घुस गई बिल में . अब तो चुनाव का फैसला समझो हो ही गया. बेचारी रत्ना देवी को हा !हा !हा !” एडवांस में महफ़िल सज गई थी ,जाम से जाम टकरा रहे थे, रात को रंगीन बनाने के सभी उपादान हाजिर थे .

“अरे, तुम लोग अचानक यहाँ ?” आज निशिकांत, कामिनी, वरुण ,रोहन के साथ कोलेज के कई साथियों को अपने घर देख रत्ना हैरानी से बोली |
“देखा न रत्ना हम ना कहते थे यह राजनीति एक वेश्या है, साड़ी,कम्बल,और शराब की बोतलों में बिक गई तुम्हारी जनता |”
“बिलकुल ठीक कह रहे हो निशि ,इस देश का कुछ नहीं हो सकता |यहाँ पाक साफ छवि वालों को भी गदला कर दिया जाता है |” कामिनी की आवाज में दर्द था |
“इसका मतलब तुम लोग भी सोचते हो मैंने गलत राह चुनी ?” रत्ना ने हँसते हुए अपने मित्रों से पूछा |
“हमने ऐसा कब कहा, और ‘तुम लोग भी’… मतलब किसी और ने भी तुमसे इस संबंध में कुछ कहा ?” वरुण ने प्रश्न किया |
“अरे ! माँ हमेशा घबराई रहती हैं, जब भी घर से किसी सभा के लिए निकलती हूँ तो लौटे तक माँ भगवान के सामने दीपक लगाए बैठी रहती हैं|” रत्ना बोली |
“वो माँ है ना रत्ना, तुम उनका दर्द नहीं समझ पा रहीं|” चित्रा बोली |
“मैंने माँ का दर्द समझ कर ही तो यह राह अपनाई है चित्रा |”
“मतलब …!”
“मतलब हमारी भारत माँ पीड़ित है ऐसे छद्म और भ्रष्ट,गद्दार नेताओं से ,ये धीरे-धीरे भारत माँ के आँचल को तार-तार कर रहे हैं ,उसे वापस गुलामी की बेड़ियाँ बांधना चाहते हैं मैं अपनी उसी भारत माँ का स्वाभिमान उन्हें वापस लौटाना चाहती हूँ|” रत्ना के ये शब्द सुनकर सभी मित्रों के सिर मारे शर्म के झुक गए |
“अरे ! क्या हुआ तुम लोगों को …इस तरह ?”
“सॉरी रत्ना ! हमने तुम्हें गलत समझा ,हम सोचते रहे तुम राजनीति में अपना कैरियर बनाने उतरी हो , जैसा अक्सर लोग करते हैं | उनके केवल भाषण में ही जनता का दर्द और देश का फर्ज दिखाई देता है | बाकी अपने राशन में ही लगे रहते हैं वो तो हम हमेशा अंकल को तुम्हारे साथ देखते हैं तो हमें भी प्रेरणा मिली |”

तभी एक घटना घटी, एक छात्र ने कालेज प्रबंधन की ज्यादतियों से तंग आकर आत्महत्या करने की कोशिश की | छात्र अस्पताल में जीवन और मरण के बीच झूल रहा है, पड़ताल से पता चला कि छात्र निम्न माध्यम परिवार से है, प्रबंधन द्वारा आये दिन किसी न किसी बात पर पैसों की मांग की जाती है इससे वह अपनी पढ़ाई जारी रखने में असमर्थ महसूस कर रहा था सो उसने यह घातक कदम उठाया | सारे छात्र तनाव में थे रत्ना दीदी के जाते ही उनका रोश फूट पड़ा, रत्ना ने मैनेजमेंट को आड़े हाथों लिया | मामला पीड़ित छात्र के स्वस्थ होने तक उसका खर्च, साथ ही उसकी पढाई आधे शुल्क पर किये जाने पर खत्म हुआ | साथ ही यह चेतावनी भी कि आगे से यदि किसी छात्र को परेशान किया तो इस बिल्डिंग में ताला नजर आएगा | इस घटना का असर यह हुआ कि रत्ना को युवा शक्ति का साथ मिला | इसे कहते हैं मुद्दई लाख बुरा चाहे क्या होता है ,वही होता है जो मंजूरे खुदा होता है | दुश्मन की हर चाल उन्ही पर उल्टी पड़ रही थी | आज फिर रत्ना का आँगन कालेज के युवाओं से भरा था |
“हमें गर्व है आप पर रत्ना दीदी, आज से हम सब तो आपके साथ हैं ही,आपके नेक इरादों के रहते ईश्वर भी आपके साथ है |” इसी बीच रत्ना के कोलेज साथी भी वहाँ पहुँच गए |
“शुक्रिया दोस्तों मेरा मनोबल बढ़ाने के लिए | इस हफ्ते वोटिंग है आप सबका साथ चाहूंगी |”
“विजयी भव: |” कहते हुए सभी मित्र खिलखिला पड़े , चुनाव के दौरान जनता ने बढ़ -चढ़कर वोटिंग में हिस्सा लिया | विपक्षियों को तसल्ली थी कि डरी सहमी जनता का वोट आखिर उन्हीं के पाले में आना है इसीलिए वे पूरी तैयारी के साथ चुनाव कक्ष के बाहर ढोल नगाड़ों के साथ खड़े थे.
आज शाम को परिणाम आने हैं रत्ना शांत भाव से बैठी परिणाम का इंतजार कर रही थी वहीं विपक्षियों में काफी गहमागहमी थी | रत्ना को माँ की दुआ और मित्रों के कहे वो शब्द ‘ईश्वर तुम्हारे साथ है’ याद आ रहे थे | इंतजार की घड़ियां समाप्त हुई चुनाव अधिकारी ने घोषणा करते हुए कहा,
“ नेशनल पार्टी को 1281 वोट प्राप्त हुए हैं, देश हिताय पार्टी को 1889 वोट और…स्वतंत्र उम्मीदवार डा. रत्ना प्रखर को 21430 वोट हासिल हुए हैं अतः रत्ना जी भारी बहुमत से चुनाव जीत गई हैं |” जनता रत्ना के जयकारे लगा रही थी | लोगों में शोर था,
“बेवकूफ नहीं देश की जनता, न ही चूहे की तरह डरपोक ,वह समय पर दाव चलना जानती है, आखिर जनता ने अपना फैसला दे ही दिया |” आज मीडिया का रुख रत्ना की ओर था ,
“रत्ना जी आपने भारी मत से विजय हासिल की है ये जीत का सेहरा आप किसके सर बांधना चाहेंगे ?”
“पहले तो अपने पिता को इसका श्रेय देना चाहूंगी जो विपरीत परिस्थितियों में भी मेरे फैसले के साथ रहें ,फिर अपने युवा साथियों को जिन्होंने आज यह दिन दिखाया है .” पास ही खड़े मित्तल साहब मुग्ध भाव से बेटी को देख गर्व अनुभव कर रहे थे .
सृजक

डॉ. लता अग्रवाल ‘तुलजा’

प्रस्तुति